साक्षर होना अपने-आप में एक बहुत महत्वपूर्ण बात है। साक्षरता का मोल केवल वही जानते हैं, जो किन्हीं कारणवश पढ़-लिख नहीं सके। ये वो लोग हैं, जिन्हें अपने जीवन में अक्सर ऐसी घटनाओं से दो-चार होना पड़ता है, जहां या तो अक्षर देख कर वे बेबस हो जाते हैं, और कई बार सामने मौजूद लोगों के सामने सिर झुक जाता है। महज दो अक्षर के कारण किसी का सिर नहीं झुके, इसके लिए संयुक्त राष्ट्र के आह्वान पर हर साल साक्षरता अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का मकसद केवल एक है- लोगों को साक्षर बनने के लिए प्रेरित करना।
साक्षरता दर कम होना महज किसी एक देश या प्रदेश की समस्या नहीं है, बल्कि पूरे विश्व में यह समस्या व्याप्त है। और पढ़ाई नहीं कर पाने का भी केवल एक कारण नहीं होता है, तमाम कारण हैं, परिस्थितियां हैं, जिनकी वजह से लोग निरक्षर रह जाते हैं। ऐसी परिस्थतियों का सामना नहीं करना पड़े, इसके लिए यूनाइटेड नेशन्स एजूकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल ऑर्गनाइजेशन (यूनेस्को) के तत्वावधान हर साल यह दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को 1966 से लोगों को इस बात का अहसास कराने के लिए मनाया जा रहा है, कि शिक्षा महज जरूरत नहीं बल्कि हर व्यक्ति का अधिकार है।
इस साल का इंटरनेशनल लिट्रेसी डे का थीम फोकस ऑन लिट्रेसी टीचिंग एंड लर्निंग इन कोविड-19 क्राइसिस है। इसके तहत पढ़ाने के बदलते तरीकों पर भी फोकस किया जा रहा है। दरअसल महामारी के इस दौर में लगभग सभी देशों में सरकार की तमाम योजनाएं चलायी जा रही हैं, साथ में लोगों को योजनाओं के प्रति जागरूक किया जा रहा है। ऐसे समय में जब फेस-टू-फेस नहीं मिल सकते हैं, तब जागरूकता संदेशों को लोगों तक पहुंचाने के लिए मल्टीमीडिया का सहारा लिया जा रहा है। जाहिर है, ऐसे लोग जो पढ़े-लिखे नहीं हैं, वे सक्रिय रूप से इन अभियानों का हिस्सा नहीं बन पा रहे हैं। क्योंकि वो पढ़ नहीं सकते हैं।

कोविड’19 के दौनान लोगों को पढ़ाने के लिए इंटरनेट के अलावा टीवी-रेडियो का भी सहारा लिया जा रहा है। स्कूली शिक्षा के अलावा कई देशों में प्रौढ़ शिक्षा के लिए विशेष कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं, ताकि महामारी की वजह से निरक्षर लोगों की शिक्षा में कोई बाधा नहीं आये।
साक्षरता से जुड़े तथ्य जो आपको जरूर जानने चाहिए-
1965 में ईरान में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस सम्मेलन में कई देशों के शिक्षा मंत्री शामिल हुए थे।
1966 में ही यूनेस्को ने 8 सितम्बर को अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस घोषित किया था।
दुनिया की पहली अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस कॉन्फ्रेंस का आयोजन 1967 में हुआ था।
पूरी दुनिया में 773 मिलियन वयस्क और युवा आधारभूत शिक्षा से वंचित हैं।
617 मिलियन बच्चे और किशोर पढ़ लिख नहीं सकते हैं, साथ ही उनको साधारण गणित भी नहीं आती है।
पूरी दुनिया में 1.09 बिलियन छात्र हैं, जिनमें से करीब 62 प्रतिशत छात्रों की शिक्षा कोरोना की वजह से लगाये गए लॉकडाउन के बची बाधित हो हुई।
2017 में साक्षरता मिशन में डिजिटल लिट्रेसी को भी जोड़ा गया, ताकि ऐसे लोग पढ़ाई के साथ-साथ मोबाइल या अन्य डिजिटल उपकरण चला सकें।

भारत में साक्षरता से जुड़े कुछ तथ्य
देश में साक्षर भारत कार्यक्रम चलाया जा रहा है, जिसके तहत 26 राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों के 410 जिलों में लोगों को साक्षर बनाने का अभियान जारी है।
इस अभियान के तहत अब तक 7.64 करोड़ लोग साक्षर हो चुके हैं।
जनगणना के अनुसार 2011 में भारत की साक्षरता दर 72.98 प्रतिशत थी। 2001 में 64.84 प्रतिशत और 1991 में 52.21 प्रतिशत।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय (जो अब शिक्षा मंत्रालय है) की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार देश में ग्रामीण भारत में साक्षरता दर 64.7 प्रतिशत है। इनमें ग्रामीण भारत में 56.8 प्रतिशत महिलाएं और 72.3 प्रतिशत पुरुष साक्षर हैं।
इसी रिपोर्ट के अनुसार शहरी भारत की साक्षरता दर 79.5 प्रतिशत है, जिनमें 74.8 प्रतिशत महिलाएं और 83.7 प्रतिशत पुरुष साक्षर हैं।