कोरोना काल में बेरोजगारी की ऐसी मार पड़ रही है कि डिग्री धारक मज़दूर बन गए हैं. डिग्री लेकर अच्छा जीवन जीने का सपना संजोए युवाओं के जीवन को कोरोना ने झकझोर दिया है.


डिग्री लेकर भी उनके पास रोजगार का कोई साधन नहीं था. परिवार और अपना पेट पालने के लिए अब युवाओं ने गांवों में मनरेगा का दामन थामा है. एक दिन के काम के लिए युवा 201 रुपये कमाते हैं.

हजारों रुपये की पगार पाने का सपना देखने वाले ये डिग्री धारक युवा आज कोरोना काल में मात्र कुछ सौ रुपये में अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं.

मेरठ के परीक्षितगढ़ गांव में सूरज निकलते ही कुछ युवक मनरेगा के तहत मजदूरी करते दिखे. इन मजदूरों में खास बात यह थी कि इनमें से कोई बीए है तो कोई बीकॉम, कोई एमए की पढ़ाई कर रहे हैं.
इसी गांव का रहने वाला अंकित भी बीकॉम किए हुए हैं और वह एमए की पढ़ाई कर रहे थे. पिता की तबीयत खराब हुई तो मजदूरी करने आ गए. उनका कहना है कि अगर आर्थिक स्थिति से जूझ रहे हैं तो कोई भी काम बुरा नहीं होता. वह पुलिस में जाना चाहते थे लेकिन अब शायद उन्होंने यह सपना छोड़ दिया है.
वहीं एक और शख्स जिनका नाम वीरेंद्र है. वह भी ग्रेजुएट हैं और काफी सालों से मजदूरी कर रहे हैं. हालांकि वह संतुष्ट नहीं है लेकिन मजबूरी के तहत ही इस काम को कर रहे हैं. नौकरी नहीं मिली तो मेहनत मजदूरी ही करने लगे. कई सारे एग्जाम दे चुके हैं लेकिन नौकरी नहीं लगी. घर में 6 लोग हैं और सभी का जिम्मा वीरेंद्र के कंधों पर ही है. उसने अपनी बहनों की भी शादी की है.

गांव के प्रधान राजपाल सिंह का कहना है कि लॉकडाउन में युवाओं की हालत खराब हो गई थी. बहुत सारे लोग उनके गांव के हैं जो पढ़े-लिखे हैं और अब मजदूरी का काम कर रहे हैं.

वहीं, एडीओ पंचायत बाबूराम नागर का कहना है कि मनरेगा के तहत जिन्होंने रजिस्ट्रेशन कराया उनको वह काम दे रहे हैं. जो लोग पढ़े-लिखे हैं और डिग्री धारक हैं उनके लिए भी वह जिला उद्योग केंद्र से और आईटीआई से बात कर रहे हैं और उसके लिए फॉर्मेट भी तैयार किया गया है. उनके फॉर्म भरवाए जा रहे हैं. जाे मजबूरी के तहत मजदूरी का काम कर रहे हैं. उनको उनके हिसाब से ही रोजगार मिल जाए, जिसकी व्यवस्था की जा रही है.